कलम, आज उनकी जय बोल (रामधारी सिंह 'दिनकर')
जो अगणित लघु दीप हमारेतूफानों में एक किनारे
जल-जलाकर बुझ गए किसी दिन
मांगा नहीं स्नेह मुंह खोल
कलम, आज उनकी जय बोल
पीकर जिनकी लाल शिखाएं
उगल रही लपट दिशाएं
जिनके सिंहनाद से सहमी
धरती रही अभी तक डोल
कलम, आज उनकी जय बोल
2 Comments:
good poem
aditiy bahut sundar
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